तबज्जू
दे मेरी सदाओ को, हमारी गुस्ताखियों के किस्से इनमें है|
कुछ
अदा, कुछ सदा, कुछ हया, कुछ बे-हयाई के हिस्से इनमें है|
हुए
थे हमारे ज़ज़्बात जवां, जिश्म में जलजले से उफनते थे|
दिलकश
नूर, कातिलाना जुनूं, गिरते पसीने से गुल सुलगते थे|
निगाहों
के घेरो में बँधा, हमारी जवानी का गहरा समंदर था|
पहले
बाहें, फिर कुछ आहें, फिर कराहों का दर्दीला मंज़र था||
खो
दिया था दुनियाँ को, उन चार पलों के अहसासों में|
थोड़ा
दर्द, उस पर मर्ज, फिर छाई थकावट इन सांसो में||
वक़्त
फिसलता जाएगा, वो खता-ए-इश्क़ उभर के आएँगी|
तुझे
पता, मुझे पता, गगन से ज़मीं फिर ना मिल पाएँगी||
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गगन 'रज़'