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गुस्ताखियाँ
तो होगी, कभी ज़्यादा कभी कम|
ये
आँखियाँ तो रहेगी, कभी सुर्ख कभी नम||
मेरे
हाथ में नहीं है, तुझे समझ पाना दोस्त|
मुक़द्दर
के आसरे है, कभी खुशी कभी गम||
ज़र्रे-ज़र्रे
में छिपा है बेइंतहा इश्क़ का नशा|
बेपर्दा
होकर देख पाक-ए-मोहब्बत को सनम||
कुछ
तो बात होगी हम लोगो के दरमियाँ|
यूँ
ही नहीं संग मिल जाते ज़मीं-ओ-गगन||
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