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यूँ
तो शहादत बहुत दी, कभी बाज़ी-ए-इश्क़ लड़कर तो देखो|
कत्ल
होगा एक झलक में, हुस्न पे ज़रा-सा मरकर तो देखो||
वो
आए इश्क़ समझाने हमें, कभी खुद भी इश्क़ समझकर तो देखो|
क्या
समझेगी शमा जुदाई-ए-गम को, कभी परवाने-सा जलकर तो देखो||
खोए
है हम यार-ए-इश्क़ में, तुम भी यारा थोड़ा खोकर तो देखो|
गर
होश ना आए तो दफ़ना देना, ज़रा इश्क़ की कब्र में सोकर तो देखो||
हर
जगह मैं ही दिखूंगा तुम्हे, ज़रा ज़मीं से गगन होकर तो देखो|
यूँ
तो शहादत बहुत दी, कभी बाज़ी-ए-इश्क़ लड़कर तो देखो|
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