Monday, February 6, 2017

पंखुड़ी गुलाब की..

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क्या दूं मिसाले मैं अपने जनाब की|
वो तो है नाज़ुक पंखुड़ी गुलाब की||

हज़ारों है सवाल इश्क़ की राह में|
ज़रूरत मुझे है बस उनके जवाब की||

आहिस्ता से छूना बिखर ना जाए कहीं|
कीमत ज़िंदगी है तौफा-ए-नायाब की||

रग-रग में समाई है रूहानी खुशबू|
रंगत चढ़ती है जैसे मदहोशी शराब की||

कैसे करे बयाँ गगन तेरे हुनर को|
कभी अदा-ए-सादगी तो कभी रुबाब की||

क्या दूं मिसाले मैं अपने जनाब की|
वो तो है नाज़ुक पंखुड़ी गुलाब की||
🌹

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