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क्या
दूं मिसाले मैं अपने जनाब की|
वो
तो है नाज़ुक पंखुड़ी गुलाब की||
हज़ारों
है सवाल इश्क़ की राह में|
ज़रूरत
मुझे है बस उनके जवाब की||
आहिस्ता
से छूना बिखर ना जाए कहीं|
कीमत
ज़िंदगी है तौफा-ए-नायाब की||
रग-रग
में समाई है रूहानी खुशबू|
रंगत
चढ़ती है जैसे मदहोशी शराब की||
कैसे
करे बयाँ गगन तेरे हुनर को|
कभी
अदा-ए-सादगी तो कभी रुबाब की||
क्या दूं मिसाले मैं अपने जनाब की|
वो तो है नाज़ुक पंखुड़ी गुलाब की||
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