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दवाएँ दर्द देने लगी, हवाएँ सर्द होने लगी|
कैसे करे भरोसा, दुनिया ख़ुदग़र्ज़ होने लगी|
कल तक देते थे ताना जिन मुलजिमों को,
आज हमारी हस्ती भी उनमें दर्ज़ होने लगी|
जो सुकून से आया करती थी जिस्म में मेरे,
आज वो साँसें भी हम पर कर्ज़ होने लगी|
किस वक़्त की करे आरजू नादां-ए-गगन,
मेहरवाँ तकदीर भी अब गर्द होने लगी|
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