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शिद्दत से बुने मेरे ज़ज़्बात समझ लो|
बे-ज़ुबान दिल के सारे अल्फ़ाज़ समझ लो||
ताजमहल तो नहीं है तोफे में मगर|
हमें शाहजहाँ और खुद को मुमताज़ समझ लो||
हम दूर ही सही लेकिन अलहदा नहीं है|
मेरी खुशबू को ही अपनी मुलाकात समझ लो||
लफ़्ज़ों से बुना है इज़हार का आईना,
मोहब्बत-ए-गगन की इसे सौगात समझ लो||
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