😢
तूने
बे-आबरू होकर हर चीज़ मुझे दी|
लेकिन उसमें पाक इश्क़ की कमी
थी||
तेरे ख्याबों ने तो छू लिया आसमाँ
को|
मगर पैरों तले तो मेरी हथेली जमी
थी||
यूँ रो पड़े मैखाने मेरे दर्द को
सुनकर|
झलकते पैमानों की आँखो में नमी थी||
जब बज रही थी शहनाई तेरी गलियों
में,
मेरी रहगुजर में ज़नाज़े की गमी
थी||
क्या दुहाई दे तेरी बेवफ़ाई की
गगन|
गैरों ने सजाया घर जहाँ मेरी
ज़मीं थी||
😢
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