कुछ तो तेरी
सांसो ने गुफ्तगू की होगी,
वरना मेरी
सांसो में यूँ आवाज़ ना होती|
बेख़बर इस
दुनिया से तूने इशारा दिया,
वरना ज़िंदगी
में सुर-ओ-साज़ ना होती||
इबादत तो
हज़ारों ने की तुझे पाने की,
मगर मेरी
इबादत खुदा को मंजूर हुई है|
तेरी बाहों
की गर्मी में डूबकर ए सनम,
मेरी रूह
की तन्हाईयां कोसो दूर हुई है||
मेरी फ़ितरत
में नहीं इश्क़ को संभालना,
लेकिन तेरे
हुस्न के आगे मजबूर हूँ|
खुदा की
कारीगारी बस तेरी ही उपमा है,
इसलिए मैं
तेरी माँग का सिंदूर हूँ||
- गगन 'रज'
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