आँखों को
आँसुओं से तार-तार करता हूँ,
तुझे चाहने
का गुनाह बार-बार करता हूँ!
गुज़रता
वक़्त किसी बवंडर से कम नहीं,
टूटी कश्ती
पर बैठ मझधार पार करता हूँ!
तेरी रुसवाईयों
के मैखाने से घिरा हूँ,
तन्हाईयों
के साथ पैमाने चार करता हूँ!
कभी तो लौटेगा
तू देखने हाल-ए-गगन,
हर रोज तेरी
यादों का श्रृंगार करता हूँ!
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