Monday, April 17, 2017

काजल


छिटककर अपना काजल दुनिया को रात दे दी|
यूँ  सँवरकर  तूने  आज  कुदरत  को मात दे दी||

कर  दिए  पल में रोशन जो दिये बुझे पड़े थे|
चंदा को भी चाँदनी की प्यारी सौगात दे दी||

लगता  है हुस्न तेरा  आब-ए-हयात हो जैसे|
ता उम्र प्यासों को मानो पूरी बरसात दे दी||

ना बचा 'गगन' के पास  अब  अपना  कुछ भी|
इस जिश्म की सारी ज़गीर-ए-कायनात दे दी||

                                                    -गगन 'रज़'

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