छिटककर अपना काजल दुनिया
को रात दे दी|
यूँ सँवरकर तूने आज कुदरत को मात दे दी||
कर दिए पल में रोशन जो
दिये बुझे पड़े थे|
चंदा को भी चाँदनी की
प्यारी सौगात दे दी||
लगता है हुस्न तेरा आब-ए-हयात
हो जैसे|
ता उम्र प्यासों को मानो
पूरी बरसात दे दी||
ना बचा 'गगन' के पास अब अपना कुछ भी|
इस जिश्म की सारी ज़गीर-ए-कायनात दे दी||
-गगन 'रज़'
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