याद हैं वो पल जो उसकी
आगोश में गुजारे थे|
किसी कोने में छुपकर उसके
बिखरे बाल सवारें थे||
ना सोचते थे भूख को, ना
पानी की गुजारिश थी,
पिघलते होठों में मानो
समंदर के किनारे थे||
सुखी हथेलियों में आ जाती थी पसीने की चार बूदें,
हर करवट पर दूरियों
के परदे गिराने थे||
बेअदबी की हर राह पर चले,
दुनिया का डर न था,
नया दौर था मानो, गुज़रे पुराने ज़माने थे||
वो कोनों की करान्झे अब
ना सुनाई देगी "गगन",
दफ़न हो गयी, जहाँ
हम दोनों के एक सिरहाने थे||
याद हैं वो पल जो उसकी आगोश में गुजारे थे|
किसी कोने में छुपकर उसके बिखरे बाल सवारें थे||
No comments :
Post a Comment