Monday, November 6, 2017

क्या खोना क्या पाना है?

मेरा जहन भरा सवालो से,
जाने कैसे उत्तर पाऊँ?
देखूं जब इस जहां की हालत,
मनुष्य मूरख पर हर्षाऊं|

कुछ को देखा ज़मीन बिछाते,
गगन सुहानी चादर ताने|
कही दिखा चमकीला बिस्तर,
होता मखमल कुछ सिरहाने|
पर असलियत की तह मे सोचो,
किसने नींद के मायने जाने?

कही दिखा खाने का ढ़ेर,
फैके सुबह-शाम-अंधेर|
कही भली दो सुखी रोटी,
मिल जाए जो देर-सवेर|
पर असलियत की तह मे सोचो,
रोग रहे है किसको घेर?

कोई बनाए ऊँचे मकान,
हर कमरे में एक इंसान|
कई लोग रहते एक में,
जहाँ व्यापे प्रेम और मान|
पर असलियत की तह मे सोचो,
किस घर बसे भगवान?

जिश्म दिखे नग्न-दरारों में,
संदुकें वस्त्र हज़ारों में|
कही चिथडन में सुकून दिखा,
पड़ा हुआ गलियारों में|
नसीब में लेकिन वही कफ़न है,
मिला जो हट-बाज़ारों में|

आए हमसब इस दुनिया में, खाली हाथ ही जाना है|
ना हो गर्व इस माया का, दिल के भेद मिटाना है|
करूँ सवाल अंतिम पंक्ति में,
क्या खोना क्या पाना है?
                                                                    -गगन 'रज'

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