Tuesday, February 13, 2018

हसरत-ए-खुदाई

बेबसी का आलम था, महफ़िल में तन्हाई थी|
ग़ज़लें मेरी बिखरी थी, रो  रही  रुबाई  थी||

तेरे लबों की मिठास ने एक जादू-सा किया|
रत्ती-रत्ती, जर्रा-जर्रा सारी खुशियाँ छाई थी||

लबों पर रखी दुआए पल में पिघल गयी थी|
जब तेरी गर्म साँसे मेरी साँसों में समाई थी||

फिर रहा ना गगन तू रग-रग में घुल गयी|

मानो पूरी हुई जो अधूरी हसरत-ए-खुदाई थी||

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