तुझ बिन,
घर, घर तो है मगर सुना-सा|
तन्हाइयों की आग मे अध-भूना सा||
रोज़ सुबह,
वजह बे-वजह,
कानो मे गूँजती तेरी अंगड़ाईयाँ|
खाली पड़े बिस्तर पर सलवटो की दुहाईयाँ||
भूल गये तेरी खुशबू,
ये तकिये और ये रज़ाईयाँ||
बुलाते है तुझे,
जैसे कई सादिया बीत गयी,
और करते है तेरा इंतज़ार,
रसोई के वो सारे बर्तन,
जो तेरे हाथो के चुंबन से खनकने लगते थे|
तेरी आहट आते ही, खुद-ब-खुद बजने लगते थे||
दो प्याली चाय के लिए रोज़ निकालता हूँ|
एक तो भर जाती है मगर दूसरी खाली पाता हूँ||
कुछ आदतें मेरी ज्यों की त्यों है,
लगता है मेरे पीछे तू घर साफ कर लेगी|
हाथ मे टिफिन और एक रुमाल दे देगी||
मगर जब देखता हूँ तो खुद जो तन्हा पाता हूँ|
अपनी ही आदतो पर बोखलाता हूँ||
जाने कैसे संभालती है तू ये घर,
सुबह,
उथल-पुथल,
यहाँ-वहाँ,
कहीं भी चीज़ें छोड़ जाता था|
मगर शाम को हर चीज़ जगह पर पाता था||
पर अब वो बातें सोचकर भी अज़ीब लगती है,
जो चीज़ सुबह जहाँ पड़ी थी वो वही पड़ी मिलती है,
जाने कैसे,
घर के हर कोने को तेरी आदात हो गयी|
ज़र्रे-ज़र्रे
की तू मानो एक बेशक़ीमती अमानत हो गयी||
कुछ लाया था नया समान घर में,
लगता है वो भी मगर जूना-सा|
तुझ बिन,
घर, घर तो है मगर सुना-सा|
तन्हाइयों की आग में अध-भूना सा||
घर, घर तो है मगर सुना-सा|
तन्हाइयों की आग मे अध-भूना सा||
रोज़ सुबह,
वजह बे-वजह,
कानो मे गूँजती तेरी अंगड़ाईयाँ|
खाली पड़े बिस्तर पर सलवटो की दुहाईयाँ||
भूल गये तेरी खुशबू,
ये तकिये और ये रज़ाईयाँ||
बुलाते है तुझे,
जैसे कई सादिया बीत गयी,
और करते है तेरा इंतज़ार,
रसोई के वो सारे बर्तन,
जो तेरे हाथो के चुंबन से खनकने लगते थे|
तेरी आहट आते ही, खुद-ब-खुद बजने लगते थे||
दो प्याली चाय के लिए रोज़ निकालता हूँ|
एक तो भर जाती है मगर दूसरी खाली पाता हूँ||
कुछ आदतें मेरी ज्यों की त्यों है,
लगता है मेरे पीछे तू घर साफ कर लेगी|
हाथ मे टिफिन और एक रुमाल दे देगी||
मगर जब देखता हूँ तो खुद जो तन्हा पाता हूँ|
अपनी ही आदतो पर बोखलाता हूँ||
जाने कैसे संभालती है तू ये घर,
सुबह,
उथल-पुथल,
यहाँ-वहाँ,
कहीं भी चीज़ें छोड़ जाता था|
मगर शाम को हर चीज़ जगह पर पाता था||
पर अब वो बातें सोचकर भी अज़ीब लगती है,
जो चीज़ सुबह जहाँ पड़ी थी वो वही पड़ी मिलती है,
जाने कैसे,
घर के हर कोने को तेरी आदात हो गयी|
ज़र्रे-ज़र्रे
की तू मानो एक बेशक़ीमती अमानत हो गयी||
कुछ लाया था नया समान घर में,
लगता है वो भी मगर जूना-सा|
तुझ बिन,
घर, घर तो है मगर सुना-सा|
तन्हाइयों की आग में अध-भूना सा||
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