गर्दिश सितारों की हो, या तबाही लकीरों की।
झोलियां खाली ही देखी है मैंने आमिरों की।।
वो गमों में भी खुशी का सुरूर मनाते रहे।
बेपरवाह सुकून ए ज़िन्दगी है फकीरों की।।
बैठा था श्मशान में मुझे आजाद करने को।
मैं कद्र करता रहा, दुनियावी जंजीरों की।।
दौलत ए जहां लूटकर भी वो खाली ही गए।
तरसती मौत अाई ऐसे जावाज़ वजीरों की।।
और भी बहुत है दौलत ए सुकुं की दौड़ में।
क्या सुनाए दास्तान गुमशुदा राहगीरों की।।
क्या ठिकाना रहा है ज़िन्दगी का, ऐ गगन।
खाली हो चली तरकश सांसों वाले तीरों की।।
- गगन
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