बेबसी का आलम था, महफ़िल
में तन्हाई थी|
ग़ज़लें मेरी बिखरी थी,
रो रही
रुबाई थी||
तेरे लबों की मिठास ने
एक जादू-सा किया|
रत्ती-रत्ती, जर्रा-जर्रा
सारी खुशियाँ छाई थी||
लबों पर रखी दुआए पल में
पिघल गयी थी|
जब तेरी गर्म साँसे मेरी
साँसों में समाई थी||
फिर रहा ना गगन तू रग-रग
में घुल गयी|
मानो पूरी हुई जो अधूरी
हसरत-ए-खुदाई थी||