Monday, May 21, 2018

जो वादा करके मुकर गई

क्या लिखूं उस प्यार के किस्से को,
एक बैठक थी, जो गुजर गई...

क्या लिखूं उस दर्द के मस्से को,
एक चीख थी, जो बिखर गई...

क्या लिखूं उस याद के हिस्से को,
एक रात थी, जो ठहर गई...

क्या लिखूं उस बेदर्द के जज़्बे को,
एक दारू थी, जो उतर गई...

क्या लिखूं गगन-ए-इश्क़ सच्चे को,
जो वादा करके मुकर गई...
- गगन 'रज'

Wednesday, May 9, 2018

प्यार हुआ कहाँ है

दर्द कहाँ है, दवा कहाँ है|
कातिल ही पुंछ रहा है, वार हुआ कहाँ है|

यूँ ही आँखे झुका ली तुमने, 
अभी तो नज़रे मिली है, इज़हार हुआ कहाँ है||

मज़े के लिए सब्र रख थोड़ा,
अभी इश्क़ - ए - जुनून, सवार हुआ कहाँ है||

तुम तो अभी से ही रो दिए,
गुस्ताखियों का पलट-वार हुआ कहाँ है||

सारे गहने पहने फिर भी,
तेरी सादगी का असल शृंगार हुआ कहाँ है||

फिर नाज़ुक अदाओं से सज जा,
अंदाज़-ए-नज़ाकत बेकार हुआ कहाँ है||

फिर एक पल की इज़ाज़त दे दे,
ये शुरूवात थी, बाकी प्यार हुआ कहाँ है||

- गगन 'रज'

Tuesday, May 8, 2018

झोलियां खाली ही देखी है मैंने आमिरों की|

गर्दिश सितारों की हो, या तबाही लकीरों की।
झोलियां खाली ही देखी है मैंने आमिरों की।।


वो गमों में भी खुशी का सुरूर मनाते रहे।
बेपरवाह सुकून ए ज़िन्दगी है फकीरों की।।


बैठा था श्मशान में मुझे आजाद करने को।
मैं कद्र करता रहा, दुनियावी जंजीरों की।।


दौलत ए जहां लूटकर भी वो खाली ही गए।
तरसती मौत अाई ऐसे जावाज़ वजीरों की।।


और भी बहुत है दौलत ए सुकुं की दौड़ में।
क्या सुनाए दास्तान गुमशुदा राहगीरों की।।


क्या ठिकाना रहा है ज़िन्दगी का, ऐ गगन।
खाली हो चली तरकश सांसों वाले तीरों की।।

- गगन