Monday, April 17, 2017

काजल


छिटककर अपना काजल दुनिया को रात दे दी|
यूँ  सँवरकर  तूने  आज  कुदरत  को मात दे दी||

कर  दिए  पल में रोशन जो दिये बुझे पड़े थे|
चंदा को भी चाँदनी की प्यारी सौगात दे दी||

लगता  है हुस्न तेरा  आब-ए-हयात हो जैसे|
ता उम्र प्यासों को मानो पूरी बरसात दे दी||

ना बचा 'गगन' के पास  अब  अपना  कुछ भी|
इस जिश्म की सारी ज़गीर-ए-कायनात दे दी||

                                                    -गगन 'रज़'

Thursday, April 13, 2017

एक सिरहाने


याद हैं वो पल जो उसकी आगोश में गुजारे थे|
किसी कोने में छुपकर उसके बिखरे बाल सवारें थे||

ना सोचते थे भूख को, ना पानी की गुजारिश थी,
पिघलते होठों में मानो समंदर के किनारे थे||

सुखी हथेलियों में आ जाती थी पसीने की चार बूदें,
हर करवट पर दूरियों के परदे गिराने थे||

बेअदबी की हर राह पर चले, दुनिया का डर न था,
नया दौर था मानो, गुज़रे पुराने ज़माने थे||

वो कोनों की करान्झे अब ना सुनाई देगी "गगन",
दफ़न हो गयी, जहाँ हम दोनों के एक सिरहाने थे||

याद हैं वो पल जो उसकी आगोश में गुजारे थे|
किसी कोने में छुपकर उसके बिखरे बाल सवारें थे||