Friday, July 28, 2017

कफ़न में कोई जेब नहीं होती

वक़्त की करामात में कोई ऐब नहीं होती|
याद रखो, कफ़न में कोई जेब नहीं होती||

बीती है ज़िंदगी बस कमाने में,
कुछ पास रखने कुछ उड़ाने में|
कुछ अपनी हैसियत दिखाने में,
कुछ अवैध चीज़ें छिपाने में||
ना सो पाएँगे जिनकी नियत नेक नहीं होती|
याद रखो, कफ़न में कोई जेब नहीं होती||

सोचा था बस एक कमाएँगे,
जाने कब इसे दो बनाएँगे|
तीन के फिर ख्वाब सजाएँगे,
चौथी पर भी हक़ जताएंगे||
जाते वक़्त चीज़े अपनी एक नहीं होती|
याद रखो, कफ़न में कोई जेब नहीं होती||

कुछ रोटी और थोड़ा अचार है,
एक छोटी-सी छत का संसार है|
दो जोड़ी कपड़ों का आधार है,
संतोष ही जीवन का सार है||
ऐसो की ख्वाहिशें कभी फरेब नहीं होती|
याद रखो, कफ़न में कोई जेब नहीं होती||

राजा की हसरतें होती हज़ार,
कुछ ये पार, तो कुछ वो पार|
फकीरों की ज़रुरतें दो चार,
पूरी हो जाती है हर बार||
हसरतें राजा की भी पूरी, देख नहीं होती|
याद रखो, कफ़न में कोई जेब नहीं होती||
                                                               - गगन 'रज'

Monday, July 3, 2017

अश्कों से आँखे जल गई

आज पता चला कितना गम है ज़माने में,
अश्कों से आँखे जल गई, उनसे दिल लगाने में|
दिल कहता है और ना रख, इश्क-ए-शमा को रोशन,
पर हथेली जलेगी मेरी ही, इस शमा को बुझाने 
में||
तपती धूप की बैसाखी को पकड़कर रो लूँगा में,
जाने कितना वक़्त लगेगा, इन आँखों को सुखाने में||

अश्कों से आँखे जल गई, उनसे दिल लगाने में||

                                                                    -- गगन "रज"