वक़्त की
करामात में कोई ऐब नहीं होती|
याद रखो,
कफ़न में कोई जेब नहीं होती||
बीती है
ज़िंदगी बस कमाने में,
कुछ पास
रखने कुछ उड़ाने में|
कुछ अपनी
हैसियत दिखाने में,
कुछ अवैध
चीज़ें छिपाने में||
ना सो पाएँगे
जिनकी नियत नेक नहीं होती|
याद रखो,
कफ़न में कोई जेब नहीं होती||
सोचा था
बस एक कमाएँगे,
जाने कब
इसे दो बनाएँगे|
तीन के
फिर ख्वाब सजाएँगे,
चौथी पर
भी हक़ जताएंगे||
जाते वक़्त
चीज़े अपनी एक नहीं होती|
याद रखो,
कफ़न में कोई जेब नहीं होती||
कुछ रोटी
और थोड़ा अचार है,
एक छोटी-सी
छत का संसार है|
दो जोड़ी
कपड़ों का आधार है,
संतोष ही
जीवन का सार है||
ऐसो की ख्वाहिशें कभी फरेब नहीं होती|
याद रखो,
कफ़न में कोई जेब नहीं होती||
राजा की
हसरतें होती हज़ार,
कुछ ये
पार, तो कुछ वो पार|
फकीरों
की ज़रुरतें दो चार,
पूरी हो
जाती है हर बार||
हसरतें
राजा की भी पूरी, देख नहीं होती|
याद रखो,
कफ़न में कोई जेब नहीं होती||
- गगन 'रज'