Tuesday, January 3, 2017

इश्क़ का बुखार

बेइंतहा आशिकी मेरे लहू के साथ घुल गयी|
ये आँखे कभी दिन तो कभी रात भूल गयी||

हर अल्फ़ाज़ खामोशी के दायरे में क़ैद था,
दीदार हुआ, ज़ुबा जाने क्या कबूल गयी||

इस कदर आए थे वो ख्याबों में मेरे कि,
प्यासी बाहें उनकी पनाहों में झूल गयी||

मुद्दतो से साफ़ किए जा रहे थे चेहरा,
अक्स दिखा जो आईने की धूल गयी||

कैसा चढ़ा है इश्क़ का बुखार 'गगन' पे,
मैं दुनिया भुला या दुनिया मुझे भूल गयी||