बेइंतहा
आशिकी मेरे लहू के साथ घुल गयी|
ये आँखे
कभी दिन तो कभी रात भूल गयी||
हर अल्फ़ाज़
खामोशी के दायरे में क़ैद था,
दीदार हुआ,
ज़ुबा जाने क्या कबूल गयी||
इस कदर आए
थे वो ख्याबों में मेरे कि,
प्यासी बाहें
उनकी पनाहों में झूल गयी||
मुद्दतो
से साफ़ किए जा रहे थे चेहरा,
अक्स दिखा
जो आईने की धूल गयी||
कैसा चढ़ा
है इश्क़ का बुखार 'गगन' पे,
मैं दुनिया
भुला या दुनिया मुझे भूल गयी||